वो मर्दानी वाली दादी जो बनी देश की शूटर और रिवॉल्वर दादी (Shooter dadi and Revolver dadi)

चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर बागपत के जोहरी गांव उत्तर प्रदेश में रहते है, यह दोनों देरानी जेठानी है । 2019 में, चंद्रो तोमर और उनकी भाभी, प्रकशी तोमर की आत्मकथाओं पर आधारित 'सांड की आंख ’नामक एक फिल्म रिलीज हुई थी। बॉलीवुड अभिनेत्री तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर ने फिल्म में दो शार्पशूटर की भूमिकाएँ निभाई हैं। फिल्म को दिल्ली और राजस्थान में कर-मुक्त घोषित किया गया था।। सीनियर सिटिज़न नेशनल अवॉर्ड,देवी अवॉर्ड,श्रम शक्ति अवॉर्ड, 100 वीमेन एच्इएवर अवॉर्ड, आदि कई पुरुषकरो से सम्मानित किया गया। चंद्रो सत्यमेव जयते, इंडियाज गॉट टैलेंट और हिस्ट्री टीवी के ओएमजी जैसे विभिन्न टीवी शो में जा चुकी है और उन्हें कई टीवी शोज ने सम्मानित किया है। 


चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर (Shooter Dadi)


गांव था मेरा छोटा सा, जिसका नाम जोहरी था
समाज मे थे सब लोग अलग,
महिलाओं का था सम्मान नही
घर घर की ज़िम्मेदारिया महिलाओं ने ही उठाई थी,
मेरे भी कुछ सपने थे, मेरी भी कुछ उड़ाने थी,
अपने सपने को मै पूरा कर ना सकी,
क्योंकि ज़िम्मेदारियों के आगे हमेशा मै झुकी रही।

गांव में खुला एक शूटिंग क्लब,
सपनों की एक आस जगी,
अपनी पोती शेफाली के संग मै वहा पहुँच गई,
कहा मैंने कोच को सिखाए शूटिंग मेरी पोती को,
ये सब देख पोती मेरी डर सी गई,
उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए
मैंने खुद ही बंदूक उठा दी,
शूटिंग का था कुछ पता नहीं
निशाना मेरा सही लगा,
सपनो की वो पहली उड़ान
यही से मेरी शुरू हुई।

शुरू में थोड़ा घबराई मै,
शुरू में थोड़ा हिचकी मै,
उम्र, परिवार, घर, समाज ये सब थे मेरे बोझ सभी
मन मे थे मेरे लाखों सवाल,
की क्या कहेंगे अब लोग सभी।
 
धीरे धीरे हिम्मत मेरी आसमानों को छूने लगी,
ठान लिया है मन मे मैंने, अब करना है पुरा सपना,
आसमान को छूना है, बंदूक लगी है निशाने पर,
अब ना चुकेगा ये निशान, ज़िन्दगी में मैंने अब ये ठाना।

मंज़िल मेरी शुरू हो गई,
रात रात भर जगने लगी,
जब सो जाते सारे लोग, छत के ऊपर चढ़ने लगी,
जग में पानी भर भर के , प्रैक्टिस अब मैं करने लगी,
सीधा मेरा हाथ रहे, बंधूक मेरे साथ रहे,
लेकर के मै जग का सहारा, हाथो को काबू करने लगी।

होसलो की ये बड़ी उड़ान अभी तो मैंने सीखी थी,
था ज़माना खड़ा हुआ, आँख मुझे दिखलाता था,
घर मे जीना , घर मे रहना, घूट घुट के घूघट में चलना,
चार दिवालो में रहे रहे कर, नया कुछ था सीखा नही,
था ज़माना खड़ा हुआ, आँख मुझे दिखलाता था।

झुकी नहीं मै, डरी नही मै, खड़ी रही चट्टानों सी,
जीत के लाई गोल्ड और सिल्वर,
महेनत मेरी सफल हो गई,
लोगो के वो ताने माने, अब तारीफों में बदलने लगे,
छोटी छोटी बच्चियां अब निशाने बाजी करने लगी,
छोटे छोटे हाथो से , सपना अपना बुनने लगी।

सिखने की कोई सीमा नहीं,
दादी ने ये हम सब को सिखाया,
उम्र तो बस एक नंबर है, सपनों की कोई उम्र नहीं,
जिस उम्र में उंगली सबकी धीरे धीरे कपति है,
उस उम्र में बंदूक उठा उठाकर, 
इतिहास दादी ने रच सा दिया।

भारत की वो नारी है ,
जिसने लड़ी लड़ाई है,
उम्र को पीछे छोड़ चली,
लाखों की वो उम्मीद बनी,
ना भूले ऐसी नारी को,
ना भूले ऐसी दादी को
सम्मान करें हर नारी का,
सम्मान करें हर दादी का।

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