हज़ारो बच्चो की माँ कहलाई भारत की वो सिन्धुताई

 महाराष्ट्र के वर्धा जिले में पिंपरी मेघे गाँव मे १४ नवम्बर १९४८ में सिंधुताई का जन्म हुआ। सिंधुताई एक मराठी समाजकी कार्यकर्ता है जो अनाथ बच्चो को पालती है और उनका पालन पोषण करती है। उन्होंने अनाथों की माँ के नाम से जाना जाता है। अब तक उन्होंने १०४२ से ज्यादा अनाथ बच्चो को गोद लिया। पूर्व राष्ट्रपति डॉ.ए. पी.जे.अब्दुल कलाम के द्वारा मधर ऑफ ऑर्फ़न अवार्ड, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा नेशनल फ़िल्म अवार्ड, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा सोशल वर्कर ऑफ थे ईयर अवार्ड, राष्ट्रीपति राम नाथ कोविंद द्वारा नारी शक्ति अवार्ड और ना जाने कितने पुरुस्कार, अवार्ड, मेडल्स आदि से उन्हें सम्मानित किया गया।



२० साल की उम्र में जिसे
समाज ने ठुकराया था
ससुराल वालो ने भी उसको
अपने घर से निकाला था
 मायका था बस एक सहारा 
वहा भी किसी का साथ ना पाया
१० दिन की बच्ची लेकर
भूखे पेट वो रहने लगी।

प्लेटफार्म पे भिक वो मांगती
गाना गाकर रोटी मिलती
वो रोटी भी सब मे बाटती
इतनी मुश्किल में भी उसने
इंसानियत का साथ ना छोड़ा
माँ की ममता सबसे ऊंची
यही बात सिखलाई है।

कलेक्टर से भी लड़ी लड़ाई
तभी थी वो इंसाफ है पाई
समाज मे थे कुछ ऐसे लोग
अब को दुश्मन बनने लगे
जिसको ये सब बात ना भाई
उसने अब ये आग लगाई
एक आदमी ऐसा भी आया
इंसान के रूप में भेड़िया पाया
लेकर उसने जूठ का सहारा
मेरे पति मन बहलाया
कहे थे उसने कड़वे बोल
घिनौना उसने इल्ज़ाम लगाया।

पति को मेरे कुछ यूं कहा था
ये जो तेरी औरत है
जो ९ महीने की गर्भवती है
अंदर ये जो बच्चा है
वो बच्चा मेरा ही है
ये सब सारी सुनकर बाते
पति को मेरे गुस्सा आया।

घर आकर चार बात सुनाई
घसीट के मुझको बाहर निकाला
पेट पे ऐसी लात थी मारी
ज़मीन के बल मैं गिरी रही
हाथ पकड़कर घसीटा मुझको
गाय के तबेले में था डाला
चारो तरफ़ है गाय थी छोड़ी
तबेले के बीच मैं पड़ी रही
कुछ भी मुझको समज ना आया
पेट मे अब हलचल सी हुई।

लगा पेट अब फट सा गया है
आँखे खुली तो अहसास हुआ है
बेहोशी के हालात में मुझको
छोटा सा एक बच्चा हुआ 
तबेले के बीच मैं पड़ी रही
खून से लतपत हो चुकी थी
समज ना आया खुद को संभालू
या अपने बच्चे को संभालू।

करी थी मैंने हिम्मत अब
खून से लतपत उठ चुकी थी
चारो तरफ थी गाय गूंज
एक गया सीधी भी आइ
जिसने मेरी जान बचाई
उस गाय को गले लगाया
अब आँसू ये रुक ना पाए
तब किया था मैंने एक वचन
आदमी ने मुझको ठुकराया है
गाय ने मुझको बचाया है।

आखरी सांस तक मैया बनूंगी
था ये मैंने दिल मे ठाना
चित्ता ले सेक कर रोटी खाई
समशान में मैंने रात बिताई
इतनी मुश्किलों में भी मैंने
ज़िन्दगी में मैंने हार ना मानी।

ठान लिया था मन मे मैंने
अब पीछे ना हटना है
शुरू किया एक छोटा आश्रम
नाम था जिसका सन्मति बाल निकेतन
बच्चो की उम्मीद बनी मैं
यही से मेरी शुरू कहानी 
यही से मैं मैया कहलाई।

कुछ बच्चे अब बड़े हो गए
कोई बना सिविल इंजीनियर
कोई बना बड़ा कलेक्टर
ना जाने कितनो के सपने
मैं यहा पूरी कर पाई
राष्टी पति से सम्मान मिला
ना जाने कितने पुरुस्कार है जीते
हज़ारों बच्चों की माँ कहलाई
यह है मेरी एक छोटी कहानी।

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